जो नसीब में नही था उसको क्यों किस्मत बनाई,
अगर ज़िंदगी में नही क्यों वो ज़िंदगी में आई।
अब जिसका नाम नही रहा हाथों की लकीरों पर,
क्यों मेरी दुनिया उसने अपने संग सजाई।
अगर मिल कर बिछड़ना था जीवन सफ़र में कही तो,
ज़िंदगी में क्यों मिल कर बिछड़ने की आग लगाई।
मेरी आस्था और विश्वास अब टूटा है ईश्वर
मेरा भरोसा और हर उम्मीद भी अब मिटाई।
शिकायत तुम से है भगवान, ज़िंदगी के सफ़र में,
जिनका साथ नही था क्यों उनसे ज़िंदगी मिलाई।
मोहित जागेटिया