"कविता"
सुबह जाता हूँ
शाम को घर आता हूँ
दिन भर पसीना बहाता हूँ
अपना,अपनी मेहनत का
मैं खाता पीता हूँ।
हाँ मजबूर हूँ!
क्योंकि मैं मजदूर हूँ।
धूप,सर्दी, बरसात में सहता हूँ
क्या होती है? भूख जब
पत्थर को सिर पर उठाता हूँ।
आखों में आंसू
दिल मे दर्द रहता है
जब शाम को घर आता हूँ
जैसे तैसे रात को भूख मिटा कर
सुकून की नींद में सो जाता हूँ।
हाँ ,मैं मजदूर हूँ!
पर अपनी मस्ती में रहता हूँ ।
लोग दबाते,कमजोर समझते
शोषण भी करते है।
पर मैं अपनी मेहतन से उनको दबाता हूँ।
हाँ !मैं मजदूर हूँ क्योंकि में मजबूर हूँ। ।
मुक्तक
खुद को मैने अपनी मेहनत से आगें बड़ाया।
मेहनत के दम पर मैंने खून पसीना बहाया ।
मैं कभी किसी भी काम से अब घबराता नही हूँ,
अपनी मेहनत के दम पर मैं मजदूर कहलाया।।
मोहित जागेटिया