बहुत दिनों से कलम
भी ख़मोश रहती है
कुछ ऐसा लिखूँ कि
मेरा गीत बन जाए
सोचता हूँ ऐसा आज
मैं क्या लिखूँ कि
मेरे लफ़्ज़ कागज़
पर उतर जाए ।
भावना बन जाए
हर दीन-दुखियों की
आवाज़ बने हर जन-जन की ।
कुछ ऐसा लिखूँ कि
सबकी आशाओं की
उम्मीद बन जाए ।
*-- मोहित जागेटिया*