आकाश में गरज उठी एक चिंगारी,
पराधीनता के विरुद्ध कभी न हारी।।
रानी चमक उठी वो सन सत्तावन में,
जब आज़ादी की अलख जगाई मन में।।
अपने हाथों में तलवार सजाई थी,
जिसने कांति की जब ज्वाला जलाई थी।।
वो जब लड़ी मर्दानी वो क्षत्राणी थी,
लक्ष्मीबाई झाँसी वाली रानी थी।।
मोहित जागेटिया
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