Saturday, April 8, 2017

नारी

          एक नारी
बेटी से बहु बन के जब हो घर आती है
नारी बन के  वो सारी  खुशियां लाती है।
अपने माँ बाप को घर से छोड़ आती है
अपने रास्ते  को वहाँ  से  मोड़ आती है ।

जब कभी नारी हर आँगन में  महकती है
कभी पँछी की तरह हर जगह चहकती है।
वो चिड़िया है जो हर आँगन में ढल जाती
अब तो नारी खुद के दम पर ही पल जाती।

नारी चूड़ी,पायल,कुम कुम का श्रृंगार है
वही  सरस्वती, लक्ष्मी, सीता अवतार है।
वो  प्रेम  की मूर्त  वो  प्रेम  का सागर है
प्रेम की पाठशाला और प्रेम का  दर है।

दुनिया की आदि आबादी सिर्फ नारी है
भारत  की नारी तो सब पर ही भारी है।
कही  खेल  खेला है नारी ने  दुनिया में
नारी  के  आगे  ये  दुनिया  भी  हारी है।
मोहित जागेटिया

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