Thursday, November 23, 2017

गजल


ना जानें किस आग में वो जल रही थी
मोहब्बत  के सफर में वो चल रही थी ।
कोई  नही  था  उसको  पालने  वाला
जानें किस के दम पर आज पल रही थी।
वो अपनी मंजिल की और बड़ रही थी,
लोंगो को ये बात भी क्यों खल रही थी।
आदि नही ,अनादि रौशनी की किरण थी
आज अपने सफर की और डल रही थी।
जग के सामने कभी झुकने नही दिया
और को मजबूत किया खुद गल रही थी।।
मोहित

No comments:

Post a Comment