उम्मीदों पर वो
आयाम कैसा दे गया
सफ़र में साथ था
वक्त के साथ
उसका नजरिया भी
बदल गया ।
कभी साया बन कर
साथ रहता था
दिल का कोई भी भेद
नहीं था ।
अक्षर सोचा तो नहीं था
वक्त के दरमियान
भी बदल जायेगा ।
कल तक जो उम्मीदों
पर जी रहा था।
वो आज हालातों पर
चल रहा है ।
साथ रहना , साथ बैठना
हर बात को साझा करना
दूर से भी पास था
आज पास हो कर भी
दूर जैसा अनुभव
दिल का भेद बता रहा है।
लगता है हालातों पर वो
जीना सीखा रहा है।
उससे सफ़र आसान था
मुश्किल हर राह भी
सरल हो जाती थी
उम्र का ये दौर गुजर रहा है
हर तरह से परिवेश भी बदल रहा है ।
*-- मोहित जागेटिया*
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