सफ़र की धूप में बरगद की छाँव मिल जाए ।
भाग दौड़ की जिंदगी में मेरा गाँव मिल जाए ।
निकला हूँ जिंदगी के सफ़र में इरादों से ,
अब मुझे तेरे शहर में हर भाव मिल जाए ।
मेरी मंजिल तो सदा से ही आसमान है ,
चलूँ हौसलों की रज पर वो पाँव मिल जाए ।
रोज उलझनों से भरी दुनिया में ये जिंदगी ,
नफ़रत की दुनिया में प्रेम का लगाव मिल जाए ।
मन का भेद मिटा कर अपनों से मिलाए जो ,
भव सागर पार कराए वो नाव मिल जाए ।
*-- मोहित जागेटिया*