हम भी अपना आशियाना बनाने चलें है।
रात के सपनों को अब हकिगत सजाने चलें है।
जो छोड़ चूके हमारा साथ इस दुनिया से,
उनको छोड़ हम भी दुनिया बसाने चले है। मोहित
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