Friday, February 5, 2021

कैसा सफ़र

कैसा सफ़र

क्या तकदीर के मेले है
क्यों तकदीर में अकेले है
चल रहे जिन राह पर
सर्प भी विषैले है।
मेरे ईश्वर इतने दिन
क्यों बुरे आये है
हम नहीं थे कभी इतने बुरे
जितने ये दिन बुरे है।
इन राहों से फूल हटा कर
आज मेरी राह में क्यों
शूल बिछाएं।
तड़पता ये दिल है
रो रही आँखे है
समझ कुछ नहीं पा रहे
जीवन में क्या क्या हो रहा।
ईश्वर तेरा कैसा खेल
तकदीर ने जब तस्वीर
से मिलाया था
उस बंधन को सबंध बनाया था
फिर जीवन संग जीवन क्यों नहीं।
क्या रोना ही जिंदगी में लिखा है।
मोहित जागेटिया


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