Tuesday, October 4, 2022

भोपाल जी सर


*विदाई शब्द ही ऐसा जहाँ भावों की संवेदना में वेदना भरी हुई है।।* *आँखे ओझल,दिल उदास,मायूस चेहरा मानो दुःख के बादल बरस रहें हो।*
सर जी आपका स्थान्तर हमारे गाँव से अब जयपुर हो गया है।इस बात की बहुत खुशी भी है और गम भी है।आप भी ये ही चाह रहें थे कि यहाँ से जयपुर हो जाएं तो अच्छा रहेगा।उधर आगे की पढ़ाई भी और अच्छी हो पाएगी और आपका घर भी आपके ज्यादा पास रहेगा।
आपका यहाँ से जाने का गम और दुख भी हमको रहेगा।आपके साथ हमारे जीवन की कुछ वर्षो की यात्रा रही है।वो हमेशा याद रहेगी।
आप अपनी पहली रेलवे की नोकरी को छोड़ कर यहाँ पर दूसरी नोकरी अध्यापक के रूप में आये थे।
अध्यापक के रूप में आपका आपके विषय में बहुत अच्छा परिणाम रहा है।खुद भी अच्छी मेहनत करते थे और विद्यार्थियों को भी बहुत मेहनत कराते थे।विद्यालय में आपका व्यवहार सबसे बहुत अच्छा था।और गांव में भी आपका व्यक्तिगत रूप से सबसे  अच्छा रहा है।आपकी शालीनता,सादगी आपकी पहचान रही है।आप अनजान से भी आपका व्यवहार बहुत अच्छा रहा है।सबको अच्छा मार्गदशन देते थे।
मेरा व्यक्तिगत रूप से आपका व्यवहार एक परिवार के सदस्यों जैसा बन गया था।मेरा परिवार भी आपको अपने परिवार का हिस्सा मानता था।आप मेरे हर सुख दुःख में काम आते थे।हमेशा अच्छा मार्गदर्शन देते थे।आपके साथ गुमने जाना आना अच्छा लगता था।जब तक आपका साथ रहा निःस्वार्थ रिश्तों का अनमोल बंधन रहा है।आपकी सिंपल,साधारण जीवन शैली सबको प्रभावित करती थी।
आपकी सह स्मृतियों का आभाष हमेशा हमारे दिल मे रहेगा।आपका प्रेम,मार्ग दर्शन हमेशा मिलता रहें।आप जहाँ भी रहो खुशहाल रहो।निरोगी रहो।और हमेशा आगे बढ़ते रहना।आपका परिवार सुखी रहे ,सबका अच्छा स्वास्थ्य रहे।आपके परिवार के प्रति भी मेरी मंगलकामनाएं।आप अपने सफ़र में निरंतर निसंकोच सफ़लता की और आगे बढ़ते रहो, आपकी जीवन यात्रा की महक जहाँ भी रहो वहाँ आती रहें ।मेरी दिल से ये ही शुभकामनाएं।।
मेरी वाणी,मेरे शब्द या किसी कारण आपकी भावनाओं को ठेस पहुँची हो तो उसके की ह्रदय की गहराइयों से क्षमा मानता हूँ।।

*ये रिश्तों का अनमोल बंधन था,*
*जिसको हम कभी नही भूल पाएंगे।*
*जिंदगी की इस राह में हमेशा,*
*बिछड़ कर भी सफ़र में याद आएंगे।।*
*गुजरे वक्त की हर स्मृतियां दिल में,*
*यादों के उपवन में हम सजायेंगे।।*

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