Friday, January 24, 2020

बेटी दिवस पर

राष्ट्रीय बालिका दिवस को आइये आप और हम सब मिलकर सकंल्प लें कि बेटियों को जन्म एवं विकास के समान अवसर प्रदान करें...बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ...
मेरी एक कविता है बेटी पर 

ओस की बूँदें लगती है ये बेटियाँ

पायल की झंकार है इनसे

नारी का श्रृंगार है इनसे 

परिवार का मान है इनसे

परिवार का सम्मान है इनसे ।

ओस की बूँदें लगती है ये बेटियाँ ।

राखी और भाई दूज का त्योहार है

बेटियों से ही हमारा घर-परिवार है ।

ओस की बूँदें लगती हैं ये बेटियाँ ।

माँ बनके हर कष्ट सहन करती हैं ये

बेटी से बहू बनके घर से दूर रहती हैं ये

ओस की बूँदें लगती हैं ये बेटियाँ ।

बेटियाँ तो ऐसी होती हैं जो कुछ करके दिखाती हैं

कल्पना बनके चाँद छू आती है

रानी पद्मनी तो अपना जौहर दिखाती है

मीरा भी भक्ति में जहर पी जाती है

ओस की बूँदें लगती हे ये बेटियाँ ।

हर आँगन में ये फूल खिलाती 

हर रूठे हुए को ये मनाती ।

हर चमन में ये ही खिल जाती ।

ओस की बूँदें लगती हे ये बेटियाँ ।

काँच का दर्पण हैं ये  बेटियाँ

इनको तुम ना रौंदो ।

कही टूट के ये बिखर न जाये ।

ओस की बूँदें लगती है ये बेटियाँ ।

इन कच्ची कलियों को तुम ना तोड़ो

टूट के ये फूल ना बन पायेंगी

फूल ना बनेंगी तो खुशबू न ले पाओगे

बिन खुशबु जीवन बेकार रह जायेगा ।

ओस की  बूँदें लगती है ये बेटियाँ ।

ये तो वो परी हैं जो आज यहाँ हैं

तो कल उठकर कहीं और चली जायेंगी

ओस की  बूँदें लगती है ये बेटियाँ ।

      -- मोहित जागेटिया

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