"प्रकृति का परिणाम है"
कुदरत की शक्ति
को देख आज
सारी मानव जाति
भयभीत है।
कुदरत को हमने
क्या क्या दिया है।
और आधुनिक सुविधाओं
के लिए कुदरत से हमने
क्या क्या लिया है।
जंगल को उजाड़ दिया
पर्वत को काट दिया
नदियों को मोड़ दिया।
आज ये उसका की
परिणाम है।
कभी सूखा तो कभी बाढ़
कभी आंधी तो कभी तूफान
हर चाल उसके हाथ में है
सृजन - विध्वंस।
हम कुदरत के अंश है
हमने ही कुदरत का दंश लिया।।
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