ये मौसम भी बदला ,
बदली हर फिजाएँ ,
बदलने लगी हर हवाएँ
बदली-सी ये कुदरत
बदले-बदले से कुदरत के
हर नज़ारे।
आज वो नहीं जो कल था
अब कल क्या होगा ?
अब वो ये पल नहीं !
हद से ज्यादा तपती धरा
बरसती लू की आग
मन को जलाती ये कुदरत की आग ,
कहीं हवा , आँधी तूफान
न जाने कैसे कुदरत के
आज ये भयानक परिणाम ,
बिना मौसम तेज बारिश कहीं
सूखा कहीं बाढ़ है
इस प्रकृति के बुरे ये हालात है ।
मानव ने पेड़-पर्वतों को काटा
नदियों को खोदा-मोड़ा
हवा को भी ज़हरीली बना दी
कुदरत के साथ जो खेल खेला
आज कुदरत ने भी अपने रास्ते बदले
बदल गए मौसम के मिजाज
सर्दी में गर्मी , गर्मी में सर्दी
बिन मौसम हर ऋतु बरसात ।।
-- मोहित जगेटिया
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