Wednesday, May 2, 2018

उलझा मन

निरादार हो रही वो किरण कहा है
मिल नही रहा प्रकाश वो तन कहा है।
वो हवा भी चल रही डल रहा तन मन
दिख नही रहा जो है सामने दर्पण।

यहाँ बन रही बात बात पर हर बात
जीने नही दे रहें अब वो हालात।
इस जीवन मे छाया हुआ अंधकार
सुमन सी खुशबू का मिलें वो संसार।

बनी है कही आज इस मे आशायें
जल रही दिल मे कही और ज्वालायें।
हर तपन सहन कर आगे बड़ रहा हूँ
हर कठिनाई से अब में लड़ रहा हूँ।

मन की माया कभी नही समझ पाया
मन ही तेरा बार बार ख्याल लाया।
मन ने ही मधुर आज सपना सजाया
इस मन ने ही  तुम्हें अपना बनाया।।
मोहित

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