Monday, December 2, 2019

बेटी हो कर मैं शर्मिदा हूँ(हैदराबाद की घटना पर)

"मैं बेटी हो कर शर्मिंदा हूँ"
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मेरी अस्मत से खेल कर
क्यों हो बार बार जिंदा ?
जबकी मैं हर बार मर जाती हूँ
मैं बेटी हो कर शर्मिंदा हूँ !
कहाँ पर अब खड़ी हूँ,
डर लगता है कहाँ पर अब रहूँ ।
सोचती हूँ ! क्यों ? आई मैं इस दुनिया में ?
हैवानियत की हर घटना को
देख कर मेरे अंदर ये सवाल होता है।
वो हैवानियत की घटना
जिसने मेरे जिस्म से खेल कर
मुझें अग्नि में जला दिया जाता है।
क्यों भूल जाते हैं वो शैतान
कल उनके घर में भी को कोई
बेटी,बहूँ, माँ एक नारी रहती होगी
कब तक मैं ऐसी वेदना झेलती रहूँगी ?
मैं जीत कर आई थी दुनिया में
आज हार कर जा रही हूँ अब
जिस दिन ऐसी घटनाओं के
दरिन्दों को खुले चौराहे पर
लटका दिया जायेगा उस दिन
में हार कर जीत चाहूँगी ।
लेकिन मैं कब सुरक्षित हो जाऊँगी ?
किस दिन समाज में ये संदेश जाएगा ?
जिस दिन लोगों के हृदय में भय,कानून का डर आयेगा।
बुरे काम का बुरा परिणाम होता है
ये भाव हर इंसान के अंदर आ जायेगा ।।

-- मोहित जागेटिया
भीलवाड़ा राजस्थान
पिन 311011

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