Sunday, September 1, 2019

अतुकांत कविता

अप्रतिम छवि
प्रकृतिअनुकूल वातावरण
संध्या,,,,
पंछी लौट रहें थे
अपने अपने घर!
ची ची की आवाज का
मधुर गान का स्वर
पंछी से गुज रहा था।
मौसम सुहाना
बारिश का आना लग रहा था
कुछ पल
पहले बहुत उमस
बाद में ठंडी ठंडी हवा की
लहरें।
मैं अपने आंगन की छत से
प्रकति की शोभा को
निहार रहा था।।
आसमान के बादल काले हो रहे थे
हरियाली से धरती का श्रृंगार हो रहा था
पास ही सरोवर की लहरें
किनारों से मिलने को बेताब हो रही थी।
देखने मे ऐसे लग रहा था
गगन कोई प्रिय और
ये धरती प्रेयसी दिख रही थी।
ये धरती सोलह श्रृंगार कर बैठी थी
काले बादल बारिश बन कर
प्रेयसी से मिलने को बेताब लग रहा था।।
वो ही संध्या आरती का समय
आरती की घण्टी,शंख,,,उनका गान
कर रहें थे।।
मोहित जागेटिया

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