ये साँसे कुछ दिनों की ही मेहमान है ।
ज़िंदगी इतनी थोड़ी न आसान है ?
जीना-मरना ये कुछ दिनों का है सफ़र ,
फिर भी जीवन करता कितना परेशान है ?
हौसलों के पंखों में सोच नई भरकर ,
आज मंज़िल के सफ़र की ये उड़ान है ।
कब सुबह कब शाम रोज रात है आती ,
अंधेरी रातों में भी कुछ मुस्कान है ।
ग़म भी हार गया छोड़ दी जब ज़िंदगी ,
किया क्या जिंदगी ने वही तो पहचान है ।
-- मोहित जागेटिया
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