एक रूप के तुम दो दो रूप धरोगी। मेरी राधा तो कभी रुक्मणि बनोगी। अब तुम मेरी मीत तो उनकी प्रीत हो मेरी पीड़ा तो उनका दर्द रहोगी।। मोहित
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