मैं कवि हूँ कविता बन कर छाऊँगा
दीन दुखियों की भावना गाऊँगा ।
हर गरीब की वेदना सुनाऊँगा
कभी सत्ता को दर्पण दिखाऊँगा ।
उस वतन का कितना दर्द होता है
जब वहाँ पर कोई भूखा सोता है।
भूखा बच्चा रोटी पर रोता है
रोटी के लिए रात दिन खोता है।
मैं कवि हूँ कविता बन कर छाऊँगा
दीन दुखियों की भावना गाऊँगा ।
बस नेता अपना अब वादा तोड़े
हर गरीब से रिश्ता अपना जोड़े।
देखे गरीब भूखा कैसे सोता
भूखा अंदर से कितना वो रोता।
मैं कवि हूँ कविता बन कर छाऊँगा
दीन दुखियों की भावना गाऊँगा ।
मोहित
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