Monday, June 4, 2018

सुलझन के दीपक जलाएं

     "सुलझन के दीप जलायें"
उलझी मन मे ये उलझी आशायें
सुलझन के हम अब वो दीप जलायें।
इस जीवन की बहती नदिया को हम
अब आगें उस सागर तक ले जाएं।
आखों से उतरता जहाँ पर पानी।
अब उस पानी को हम आज घटाएं।
अपनी मंजिल की और आगें बड़े
सफर का रास्ता अब खुद ही बनाएं।
हर सपना साथ हो अपना हाथ हो
अपने हौसलों को आगें बडाएं।
गुनगुनाती रहें हवायें वो गीत
जिस गीत को हमेशा हम भी गाए।।
मोहित

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