ओ मुरली वाले श्याम,
ब्रज उसका है धाम,
मुरली की धुन पर,
वो रास रचाते है।
साँवले सलोने प्यारे,
दुख कष्ट सारे हारे,
जब जमुना किनारे,
बंशी को बजाते है।
शीश है मुकुट मोर,
दही,माखन वो चोर,
सबको मोहे मोहन,
मोहन सजाते है।
खिल जाता तन-मन,
मन बसे वृंदावन,
जीवन भी खिलता है,
जब कान्हा गाते है।।।
मोहित जागेटिया
भीलवाड़ा राज.
वो श्याम गोकुल की गलियों में बंशी बजाते है।
गोपियों संग वो वृंदावन में रास रचाते है।
राधा का कान्हा,प्रीत राधिका से मोहन ऐसी ,
जब भी राधे-राधे गाते हैं कान्हा आते है।
मोहित जागेटिया
No comments:
Post a Comment