अतुकांत कविता
मैं पृथ्वी हूँ
सात समंदर से बनी मैं पृथ्वी!
ये आकाश मेरा है ये धरती मेरी है
इस पर बहती पवित्र नदियाँ
झरने,पेड़ पौधे फूल कलिया
सब मेरे है।
कही पर सागर तो घाघर है
कही पर पर्वत,पहाड़ तो
कही हिमालय है और कही
रेत का रेगिस्तान है।
कितनी प्यारी मैं हूँ पृथ्वी
जीव,जंतु,चर अचर प्राणी
सब मेरे पर रहते हैं।में सब का
पालन पोषण करती हूँ।
मैं अम्बर हूँ,में ही चाँद तारे सितारें हूँ।
में शुद्ध हवा हूँ।
मैं ऋषियों,मुनियों की तपो भूमि
यज्ञ हवनों से शुद्ध रहती थी।
पर आज लोगों ने मुझे दूषित
प्रदूषित कर डाला।
में बरसात हूँ, मैं ही आपदा हूँ
मेरा करो तुम सब अब बचाव
वरना इसकी सजा सबको मिलेंगी।।
Sunday, April 21, 2019
पृथ्वी
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