न मंजिल न रास्ते जाने किस और चल रहा हूँ।
ख्वाब अधूरे हैं ख्वाब से आज निकल रहा हूँ।।
आशायें, विश्वास हैं कैसे जीवन जी रहा
उस भगवान की आस्था के बल पर पल रहा हूँ ।।
दिल भी मेरा तड़प रहा सफर अब कहाँ पर है
उस मोम की तरह मैं मन से अब पिघल रहा हूँ।।
कैसी जिंदगी आज हैं वैसे कल क्या होगा
इस सोच की आग में आज मैं खुद जल रहा हूँ।।
हर दिन उम्र सुबह से शाम के बीच निकल रही
मैं उगता सूरज अब तो शाम को ढल रहा हूँ।।
मोहित जागेटिया
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