*कैसा सफ़र है...?*
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मजदूरों की ये कैसी अभिलाषा है ?
अब क्या ये ही इनकी ये परिभाषा है ?
भूखे-प्यासे अपने बच्चे ले चलते ,
इनके जीवन की अब किनको आशा है ??
तपती धूप में सफ़र से घर जाना है ,
पैरों के छालों से ठोकर खाना है ।
मजदूर होना कोई गुनाह है भला ?
बस आज ठोकर से नहीं घबराना है ।।
इनकी आँखों में दर्द भरा पानी है ,
कठिन रास्तों में इनकी ये रवानी है ।
देख दर्द के आंसू घाव बड़े गहरे ,
आज के मजदूरों की ये कहानी है ।।
जीवन में ये कैसा आज का सफ़र है ?
है मंजिल कितनी दूर कहाँ पर घर है ?
जिस रोटी के लिए ऐसा सफ़र होगा ,
आज मंजिल में सफ़र इधर से उधर है ।।
-- मोहित जागेटिया
भीलवाड़ा
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