कुछ बातें अधूरी रह गई
कहना बहुत कुछ था
पर उस समय सोचा नहीं था
साँसें चल तो रही थी
धड़कनें बढ़ गईं
जीवन की राह क्या थी ?
मंज़िल तो वही है
पर सफ़र के रास्ते भटक गये ।
निकले तो थे घर से
ज़िंदगी बनाने पर
जीवन ही बदल गया ।
देख कर हालात
सोच रहा ये मन
कहाँ पर आ गये ?
सोचा न था ये दिन
ज़िंदगी क्या जीत
क्या हार तय कर
न पाएंगे।।
-- मोहित जागेटिया,
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