दीप ज्योति बनकर नव प्रकाश फैलाएं।
दीप शिखा की हम दीप ज्योति बन जाएं।
गंध -सिक्त सारा परिवेश हमारा हो,
महके जो पग पग पर हम सुमन लुटाएं।।
सबका आलोकित हो मन का ये आँगन।
सबका खुशियों से भर जाए दामन।
उजियारे का स्वप्न सुहाना बन जाये,
झिलमिल दीपों का क्षण हो ये पावन।।
दीन दुखियों के मन को हम भी हर्षाये।
अंत मन की ज्योत का ये दीप जलाएं
हर घर आंगन में खुशियों की बारिश हो
इस बार हम ऐसी दीवाली मनाएं।।
मोहित जागेटिया
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