Sunday, May 19, 2019

बचपन संस्मरण

ऐसे तो जिंदगी में बचपन के बहुत से किस्से हैं। जिनको कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उन्हीं किस्सों में से एक मेरा भी बचपन का किस्सा है। जब मैं छोटा था। अपनी बहनों की शादी थी। हम लड़की वाले थे फिर भी बारात ले कर हम बीकानेर गए थे। वहाँ पर हम एक धर्मशाला में ठहरे थे। मैं छोटा तो था ही और छोटे बच्चों को चाहिए क्या? बस पैसे और पैसों से चॉकलेट।
मैं अपने बड़ों से पैसे ले कर धर्मशाला से बाहर आ गया था। जानता कुछ भी नही था। कहाँ पर दुकान है? कहाँ पर जाना है, कुछ भी पता नही था। मैं तो पैसे ले कर बहुत दूर तक चला गया था और इस बात का किसी को पता भी नही था। मैं कहाँ पर गया हूँ। मैंने गोलियां ले ली थी पर अब मैं रास्ता भूल गया था। कहाँ क्या है कुछ याद नहीं आ रहा था बस आखों में आंसू आ रहे थे। इधर-उधर घूम रहा था रोते रोते। तभी कोई दो सज्जन पुरुष मिले बोले रो क्यों रहे हो, कहाँ से आये हो और कहाँ जाना है? मैं ज्यादा कुछ बोल भी नही पाता था। उन्होनें मुझे अपनी गोदी में लिया और कुछ धर्मशाला की ओर ले गये। क्योंकि वहाँ पर एक जैसे ही बहुत सी धर्मशाला थी,.सारी धर्मशाला में घुमाया अंत में जहाँ पर ठहरे थे उस धर्मशाला में लाये। मैं अपने घरवालों को देख कर बहुत खुश हुआ था और आखों के आंसू भी मिट गए थे। मैं हमेशा उन दोनों लोगों का अहसान कभी नही भूल पाऊँगा, वो दोनों कौन थे किसके थे ये कुछ भी मैं नही जानता था। उन्होंने मुझे अपने परिवार वालों से मिलाया इतना मैं जानता हूँ। ये घटना हमेशा मेरे लिए उन दोनों पुरुष की संस्मरण बन गई है।

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