गोकुल की गलियों में ये मन मोहन है।
जो प्रेम से महकता वो ये चंदन है।
जहाँ की प्रीत में ये मन पागल होता
वो मन कान्हा की नगरी वृंदावन है।।
मेरी एक नजर में बस कान्हा छाया।
दिल की गलियों में बस कान्हा को पाया
मैं जब जब भी तन्हाई में होता हूँ,
मनप्रीत लगाने मेरा कान्हा आया।
उस कान्हा के साथ अब रिश्ता निभाना
मन मोहन से अब मन की प्रीत लगाना
खो जाना मोहन की भक्ति की प्रीत में,
जहाँ कान्हा मन को वृंदावन बनाना।।
मोहित जागेटिया
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