कैलाश की घटा से,घनघोर जटा से
निकलती जो गंगा,भारत में बहती है ।
बहती हुई गंगा,संदेश हमे देती
निर्मल तुम बनो,ये हमको कहती है ।
आये रास्ते में जो ,सब को ही मिटाती
करे कोई भी पाप,सबके वो सहती है ।
ऐसी भोले की लीला,मेरे बाबा की जो है
गले में माला विष,सापो की जो रहती है ।
चरणों में जो गया,उसका बन गया
उसके चरणों की ,लीला ऐसी चहती है।
मोहित
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