Wednesday, January 25, 2017

कैलाश की छंद

कैलाश की घटा से,घनघोर जटा से
निकलती जो गंगा,भारत में बहती है ।

बहती हुई गंगा,संदेश हमे देती
निर्मल तुम बनो,ये हमको कहती है ।

आये रास्ते में जो ,सब को ही मिटाती
करे कोई भी पाप,सबके वो सहती है ।

ऐसी भोले की लीला,मेरे बाबा की जो है
गले में माला विष,सापो की जो रहती है ।

चरणों में जो गया,उसका बन गया
उसके चरणों की ,लीला ऐसी चहती है।
            मोहित

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