Wednesday, January 25, 2017

बेटी पर गीत

आज बेटी दिवस पर मेरी कविता बेटी पर
            बेटी

ओस की बूँदें लगती है ये बेटियाँ।
पायल की झनकार है इनसे
नारी का श्रृंगार है इनसे
परिवार का मान है इनसे
परिवार का सम्मान है इनसे ।
ओस की बूँदें लगती है ये बेटियाँ।
राखी और भाई दूज का त्योहार है
बेटियाँ से ही हमारा हर परिवार है।
ओस की बूँदें लगती है ये बेटियाँ ।
माँ बनके हर कष्ट सहन करती है ये
बेटी से बहू बनके घर से दूर रहती है ये
ओस की बूँदें लगती है ये बेटियाँ।
बेटियाँ तो ऐसी होती है जो कुछ करके दिखाती है
कल्पना बनके चाँद छू आती है
रानी पद्मनी तो अपना जौहर दिखाती है
मीरा भी भक्ति में जहर पी जाती है
ओस की बूँदें लगती हे ये बेटियाँ।
हर आँगन में ये फूल खिलाती
हर रूठे हुए को ये मनाती ।
हर चमन में ये ही खिल जाती।
ओस की बूँदें लगती हे ये बेटियाँ।
काँच का दर्पण है ये  बेटियाँ
इनको तुम ना रौंदो ।
कही टूट के ये न बिखर जाये।
ओस की बूँदें लगती है ये बेटियाँ ।
इन कच्ची कलियों तुम ना तोड़ो
टूट के ये फूल ना बन पायेंगी
फूल ना बनेगीं तो खुशबू न ले पाओगे
बिन खुशबु जीवन बेकार रह जायेगा।
ओस की  बूँदें लगती है ये बेटियाँ ।
ये तो वो परी है जो आज यहाँ है
कल उसकर कही और चली जायेंगी
ओस की  बूँदें लगती है ये बेटियाँ।
      मोहित जागेटिया

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