जहा दर्शन की अभिलाषा मेरे मन में बनी है जहा समर्पण की भावना मेरे तन में बनी है । में तुम्हे जानता नही हू तू मुझे जानता है, मेरी तकदीर ही तो तेरे अर्पण में बनी है। मोहित
No comments:
Post a Comment